गोवंश (गाय) का असली स्थान ,किसान के घर में है। जब तक गोवंश किसान के घर में है, तबतक सुरक्षित है और जैसे ही किसान उसे अनुपयोगी या बोझ समझ कर अपने गर से निकल देता है उसकी हत्या हो जाती है। यदि एक भी किसान (गोपालक) अपने गोवंश को घर से बाहर न निकाले तो गोहत्या तत्काल बंद हो जाएगी। आज के इस अर्थ प्रधान युग में गोपालन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ लेना ही है। श्रद्धा भक्ति गौण हो गई है। यदि आर्थिक लाभ है तो श्रद्धा भक्ति भी है अन्यथा “भूखे पेट भजन न होई गोपाला”। अज्ञानता वश गोपालक यह समझता है कि गोपालन से आर्थिक लाभ का माध्यम सिर्फ दूध ही है और इसी कारण दूध नहीं देने वाले गोवंश को कसाई के हाथ बेच दिया जाता है। परन्तु सत्य तो यह है कि गोपालन से लाभ का मुख्य श्रोत तो गोबर और गोमूत्र है। दुर्भाग्य से भारत के अधिकांश गोपालक इस बात से अनभिज्ञ है और इसी कारण दूध नहीं देने वाले गोवंश को अनुपयोगी समझा जाता है। यदि गोपालक यह जान जाये कि गोपालन से लाभ का मुख्य श्रोत गोबर और गोमूत्र है तो वह उसे कभी कसाई को नहीं बेचेगा अपितु आजीवन प्रेम पूर्वक पालन करेगा। जब लाभ मिलेगा तो उसकी पूजा भी करेगा, यही मनुष्य स्वाभाव है। कहते हैं न - “चमत्कार को नमस्कार है”।
इस कटु सत्य को समझने के बाद यही निष्कर्ष निकलता है कि किसान को उसके गोवंश के गोबर और गोमूत्र के आर्थिक उपयोगिता का मार्ग बताना है। गोरक्षा का यही शीघ्रतम, सरलतम एवं एकमात्र समाधान।
गोग्राम अभियान का काम है गाँव-गाँव जाकर किसानों को उचित प्रशिक्षण देना और प्रशिक्षण देने के बाद तब तक कार्य की पूछताछ करते रहना चाहिए जब तक उसके लाभजनक परिणाम न मिल जाये।
इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए बड़ी संख्या में तज्ञ, योग्य, दक्ष प्रशिक्षकों को तैयार किया जा रहा है, जो पूर्ण समय देकर इस काम को कर रहें हैं। ग्रामीण जीवन ग्रामीण जीवन में गोवंश की आर्थिक उपयोगिता को चार भागों में भाग किया गया है - कृषि, ऊर्जा, मनुष्य चिकित्सा एवं ग्रामोद्योग। इन बातों को प्रभावी ढंग से गांव के किसानों तक पहुँचाने के लिए पंचायत (अंचल / मंडल) स्तर पर सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण की रचना की गई है।
प्रशिक्षण वर्ग चार दिन का होता है। सुबह ९ बजे से सायं ६ बजे तक चलता है। प्रशिक्षण, गांव में जाकर दिया जाता है। जल्द से जल्द, अधिक से अधिक गांव के किसानों को प्रशिक्षण दिया जा सके इसके लिए निरंतर प्रशिक्षण देने की योजना बनाई गई है। प्रत्येक गोग्राम प्रशिक्षक प्रतिमाह न्यूनतम एक नए पंचायत के सभी गांव के चयनित कुल 30 से 50 किसानों को प्रशिक्षण देते हैं और बाकि समय पुराने प्रशिक्षित किसानों से पूछताछ करते रहते हैं जिससे वे आगे बढ़ते रहे और अन्य किसानों को भी सिखाये। एक प्रशिक्षित किसान से अपेक्षा रहती है कि वो न्यूनतम 10 नए किसानों को सिखाये। प्रशिक्षण वर्गों के उपरांत पंचायत स्तर पर एक कार्य समिति बनाई जाती है जिसमें विभिन्न आयामों, जैसे जैविक कृषि, वृक्षारोपण, जल संरक्षण, बीज बैंक, गोपालन, गो -चिकित्सा, बायोगैस, मनुष्य चिकित्सा, उत्पादन, विपणन, गो-कथा इत्यादि, के प्रमुख नियुक्त किये जाते हैं और उनकी नियमित समीक्षा एवं योजना बैठक होती है जिसमे कार्य प्रगति पर चर्चा होती है और किसानों के अनुभव सुनें एवं संग्रह किये जाते है।
प्रशिक्षण हेतु हिंदी एवं बंगला भाषाओँ में प्रशिक्षण पुस्तक का प्रकाशन किया गया है।
अब तक कुल 145 प्रशिक्षण वर्गों में 14 जिले के कुल 947 गाँव के 2924 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और इसके सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं।
3000 से अधिक किसान जैविक खेती करने लगे, जैविक खेती में भी अच्छे परिणाम मिले। किसानों के खर्चे घटे हैं और उनकी आय में वृद्धि हुई है। आय के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई है। फसलों में रोग और कीटों का आक्रमण कम हुआ है।
5000 से अधिक ग्रामवासी गोमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हुए। पेट से सम्बंधित बीमारियाँ जैसे गैस,एसिडिटी, कब्ज इत्यादि से छुटकारा मिला। 100 से अधिक मधुमेह रोगी पूर्ण स्वस्थ हुए। कई किसान परिवारों का चिकित्सा पर होने वाला खर्च लगभग समाप्त हो गया है। गोमूत्र सेवन से लगभग 100 से अधिक लोगों को शराब की लत से मुक्ति मिली, इसके परिणाम स्वरुप देशी शराब बनाने वाला व्यक्ति अब शराब बनाना छोड़कर,गोपालन कर, गोमूत्र अर्क बना रहा है। अब वह शराब से अधिक आमदनी गोमूत्र अर्क को बेचकर कर रहा है।
लगभग 2000 परिवारों ने बर्तन धोने के लिए डिटर्जेंट का उपयोग बंद कर, गोमय भस्म का उपयोग शुरू कर दिया है। एक महिला के अपने अनुभव कथन में कहा की केमिकल डिटर्जेंट के कारण हाथ में चर्म रोग हो गया था, वो मोमय भस्म के उपयोग से एक माह में ही बिलकुल ठीक हो गया है। लगभग २००० से अधिक ग्राम परिवारों द्वारा बनाया हुआ गोमय दन्तमंजन का उपयोग हो रहा है जिससे बाजार से मंजन खरीदने का खर्च भी बंद हो गया है।
ग्रामीण किसानों द्वारा नियमित रूप से गोमय धूप का निर्माण किया जाता है, जिसे शहरवासी अपने दैनिक पूजन में प्रयोग करने लग गए हैं। इसके अलावा प्रत्येक दिपावली के अवसर पर ग्रामीणों द्वारा हजारों की संख्या में गोबर के दीपक बनाये जाते हैं जिसे नगरवासी सहर्ष खरीद कर अपने घर आँगन को रोशन करते हैं।
अब तक 79 किसान परिवारों में गोबर गैस प्लांट लगे, गोबर गैस प्लांट से महिलाओं को साफ सुथरा एवं निःशुल्क ईंधन प्राप्त होने लगा। इससे उनके उनके जीवन में सुख का अनुभव होने लगा है। गोबर गैस की स्लरी का खेती में उपयोग कर किसानों को लाभ होने लगा होने लगा है।
गोग्राम अभियान से सम्पर्कित अधिकांश गाँव में किसान " दूध नहीं देने वाले गोवंश" को भी बेचता नहीं है,बल्कि गोबर-गोमूत्र के लिए बड़े चाव और श्रद्धा से पालता है, इसके साथ ही जिन किसानों के पास गोवंश नहीं है वे भी अपनी व्यवस्था से देशी गोवंश ला रहे हैं और कई किसानों ने जर्सी गाय छोड़कर देशी गाय का पालन करना प्रारम्भ कर दिया है।
आधे से ज्यादा जिलों में जल का अभाव है। ऐसे में वर्षाजल संग्रह करना ही इस समस्या का सरलतम समाधान है। गोग्राम अभियान में किसानों को वर्षाजल संग्रह के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित किया जाता है। साथ ही जरूरतमंद किसानों को वर्षाजल संग्रह करने के लिए तालाब काटने में सहयोग भी किया जाता है। एक तालाब बनाने की लागत लगभग 10000 आती है।
गोग्राम के अंतर्गत वृक्षारोपण भी करवाया जाता है। वृक्षारोपण अभियान गोग्राम का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों की समृद्धि एवं गोवंश का संरक्षण है। साथ में पर्यावरण संरक्षण तो होता ही है।
किसानों के खेत में निर्धारित संख्या में फलदार वृक्षों का बगीचा लगवाया जाता है। इसके लिए गाँव-गाँव जाकर किसानों का चयन किया जाता है और उन्हें वृक्षारोपण के लाभ बताये जाते हैं और साथ ही उसके देखभाल की प्रक्रिया का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। धान की खेती की तुलना में फल की खेती से अधिक लाभ होता है और फल के बगीचे में गोवंश को चरने का स्थान मिल जाता है।
इन बगीचों को सम्पूर्ण जैविक पद्धति से पोषित किया जाता है और इनसे उत्पादित जैविक फल का शहर में विपणन की सम्पूर्ण योजना बनाई गयी है। एक पौधे की लगत 50 रुपये आती है जिसमें पौधे के साथ-साथ किसानों का प्रशिक्षण और नियमित पूछताछ का खर्च भी जुड़ा हुआ है। शहरवासियों के सहयोग से पौधे किसानों को स्वल्प शुल्क में उपलब्ध करवाए जाते हैं एवं किसान उनकी देखभाल करता है। हमारे वृक्षारोपण अभियान में किसान,गोमाता एवं भूमिमाता तीनों का कल्याण समाहित है। अबतक 8801 किसानों के खेत में 3,25,854 फलदार पेड़ लगाए गए हैं।
शहरवासियों को गाँव, किसान, गाय एवं गोग्राम अभियान का दर्शन एवं अनुभव करवाने हेतु समय-समय पर गोग्राम यात्राओं का आयोजन किया जाता है। गोग्राम यात्रा में सम्मिलित होकर गोग्राम अभियान को समझें एवं अपने बन्धु बांधवों को बतायें। अबतक 60 से अधिक ग्राम यात्राओं में 750 से अधिक गौ-प्रेमी और प्रकृति-प्रेमी सम्मिलित हुए।
गोग्राम अभियान से जुड़े किसान जैविक फसल उपजा रहे हैं और गोबर-गोमूत्र द्वारा विभिन्न उत्पाद बना रहे हैं। शहरवासियों से निवेदन है की वे गाँव से जुड़कर इन वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग करें जिससे शहरवासियों को शुद्ध आहार और उपयोगी वस्तुएँ मिलेगी और किसान को उचित मूल्य।
मासिक सत्संग एवं वार्षिक गो-महोत्सव के माध्यम से समाज में गो-भक्ति का भाव जगाने का कार्यक्रम नियमित रूप से किया जा रहा है। यदि आप हमारे मासिक कीर्तन में सम्मिलित होना चाहें तो हमें 8100330044 पर संपर्क करें।
गोग्राम अभियान में 1 गाँव के 3 किसानों को प्रशिक्षण देने एवं 1 वर्ष तक उनकी पूछताछ कर उनके 12 गोवंश का संरक्षण सुनिश्चित करने की कुल लागत रु3600/- है।
गोग्राम संरक्षक बनने के लिए आप अपने घर में गोरक्षा पात्र की स्थापना कर प्रतिदिन मात्र रु 10/- जमा करें या एक मुश्त रु 3600/- बैंक खाते में जमा करें।
* गोग्राम अभियान को जल्द से जल्द पश्चिम बंगाल के सभी 40,000 गाँव तक पहुँचाने के लिए आपसे प्रार्थना है की आप स्वयं गोग्राम संरक्षक बनें एवं तीन लोगों को गोग्राम संरक्षक बनायें। गोग्राम अभियान में हर एक संरक्षक महत्वपूर्ण है।
* हम सब के सामूहिक प्रयास से ही भारत से गोहत्या का कलंक मिट सकता है।
* गोसेवा परिवार को दिया हुआ दान 80G एवं CSR के अंतर्गत आयकर-छूट के लिए मान्य है।
गुल्लक मंगवाने के लिए कृपया WHATSAPP करें - 8100330044
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